थार अकाल भूख और मौत इनका आपस में गहरा नाता है सदिया बीत गयी लेकिन इनका साथ कभी नही छूटा साल दर साल थार का अकाल भीषण होता गया मूक जानवर मरते गए किसान के बच्चे भूख से बिलखते गए लेकिन यहां का किसान कभी हारा नही रेतीली बंजर जमीन पर पानी की एक बून्द पड़ते ही थार का किसान कुदरत से किश्मत का दांव लगाने को तैयार हो जाता है अक्सर किस्मत की बाजी यहां का किसान हारता है फिर बच्चे भूखे सोते है फिर पशु मरते है अकाल हर बार जीत जाता है किसान हार जाता है यहां का किसान न तो सरकार से सबल मांगता है न ही मुआवजा क्योंकि यहां का किसान दिल का कमजोर नही है यहां का किसान मेहनत पर यकीन रखता है अगर थार का किसान कमजोर हो जाता तो दिल्ली के हर छायादार पेड़ पर रेगिस्तानी किसान झूलता हुआ नजर आता
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