Sunday, September 13, 2015

एक बार फिर अकाल

थार अकाल भूख और मौत इनका आपस में गहरा नाता है सदिया बीत गयी लेकिन इनका साथ कभी नही छूटा साल दर साल थार का अकाल भीषण होता गया मूक जानवर मरते गए किसान के बच्चे भूख से बिलखते गए लेकिन यहां का किसान कभी हारा नही रेतीली बंजर जमीन पर पानी की एक बून्द पड़ते ही थार का किसान कुदरत से किश्मत का दांव लगाने को तैयार हो जाता है अक्सर किस्मत की बाजी यहां का किसान हारता है फिर बच्चे भूखे सोते है फिर पशु मरते है अकाल हर बार जीत जाता है किसान हार जाता है यहां का किसान न तो सरकार से सबल मांगता है न ही मुआवजा क्योंकि यहां का किसान दिल का कमजोर नही है यहां का किसान मेहनत पर यकीन रखता है अगर थार का किसान कमजोर हो जाता तो दिल्ली के हर छायादार पेड़ पर रेगिस्तानी किसान झूलता हुआ नजर आता 

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